Monday, December 2, 2019

सफर कुछ नया सा है मेरे हाथों की खनक एक जिम्मेदारी साथ लाती है याद दिलाती है की परवरिश की असली परीक्षा को पास करना है एहसास नया है और रास्ते मेरे अब और भी आसान होंगे ऐसा एहसास कर पाना थोड़ा मुश्किल सा मालूम लग रहा है
दिन की शुरुआत कुछ इस तरह से हुई हरी चूड़ियाँ और पायल मुझे सजा रही थी  साथ ही साथ एक जिम्मेदारी  का आगाज़ मेरे हाथों की एक एक चूड़ी अपनों की याद में खनकने लगी अब तुम्हें दो घरों के सपनों को मुक्कमल करना है इन चूड़ियों को जंजीर मत बनने देना सिन्दूर मेरा मुझसे जिरह करने लगा
आँखों का काजल आज कुछ काला सा नजर आया वरना अभी तक तो रंग फीका ही था
वरमाला में सजाया एक एक फूल मेरे अंतर्मन को झकझोर रहा था बढ़ते कदम मेरे या अपनों से पीछे होने का गम मेरी प्राण चेतना की जद्दोजहद घेर रही थी बचपन का आँगन या नयी रोशनी का घर चुनना बहुत कश्मकश भरा है एक लड़की के जीवन में
पड़ाव कुछ नया सा है और आशाओं से भरा आगाज़ हुआ है मेरे कदम दर कदम साथ चलने का धैर्य लिए मेरे जीवन साथी का सात फेरे ,सात वचन कसम रिवाज़ और उनमें सबसे महत्पूर्ण अग्नि का साक्षी होना।
कहते है कन्यादान संसार का महादान है फिर इस दान की महिमा इतनी सी है की पल भर में पिता के आशियाने को छोड़ना पड़ता है
लिखने को बहुत कुछ है बचपन की अठखेलियां लिखुँ की पिता के आंसू लिखुँ जो कन्यादान के समय उन्होंने अपने अंदर छुपा लिए न जाने कितनी बार उनको रोका होगा पोछा होगा और फिर चेहरे पर वही पुराना रौब बड़ी अदब के साथ।
माता पिता जब वर वधु को आशीर्वाद देते है सदा सुखी रहो तो एक बवंडर उठता है कि अपने घरौंदे से गौरिया
को आसमान में बादलों के बीच उड़ने की कह रहे हो मानो उन्होंने ये विश्वास कर लिया है कि उनकी चिड़िया परिपक्व पंखो को आज़ादी दे देगी
सदा सुखी रहो।
अग्नि को साक्षी मान दो पंछियो को एक पंख में बाँध उड़ने के नियम बताये जाते है
हर वचन कंठस्थ कर लिया गया है आपके साथ
सपने जो अधूरे है मेरे ताक पर रखे है आपके साथ पूरे करने को
शादी मुबारक
24 november की तारीख
एहसासो का समुंद्र है
मोतियों को ढूढ़ना है
मुक्कमल दस्ताने इश्क़ है
नूर ए दस्तूर गुलाबों से सजाना है

Saturday, September 7, 2019

सारा शहर विकलांग है 

रास्ते जिन पर हर रोज
मज़िलों की आहट गुजरती है
उन पर आँसुओं के कदमो को
कदम भर जगह न मिली
भरे ज़माने की खाली रातों में
क्षण भर में  अस्मिता छीनी
चीखी सन्नाटो के शहर में
भूल बैठी ,भूल बैठी की ये
सारा शहर विकलांग है
स्याह रातों की चीखों को
बड़े ही अदब से अनसुना
 करना बखूबी मालूम है उसे
दहशत फ़ैल गयी शहर में
अस्तित्व पर जो दाग लगे
और पूछा गया - ये दाग ,
और कहाँ कहाँ है
 किस किसने दिए ये दाग
बेशर्म हया थी मेरी जम्हूरियत
बदहवासी कांपती जुबान थी
इतना ही कह सकी बस
खुशनसीब होती जो कोख से
अस्तित्व में न आती ,
सड़क पर जो छींटे थे
हर एक ने हिस्से में बाटें थे
सिसकियाँ फाइल के पन्नों में
लिपटा दी जायेंगी अब ,
प्रमाण पत्र भी न माँगा
जायेगा चरित्र का ,
वो तो अब हर एक शख्शियत द्वारा
अखवारों किताबों और टीवी
पर बड़े ही अफसोस के साथ
सुबह की चाय में पढ़ लिया जायेगा
इंतज़ार रह जायेगा अगली सुबह
एक नयी खबर का | 

धुआँ या ज़िन्दगी 

मैली फटी धोती तलाश गुज़र थी एक कोना संदेह की लकीरें प्रबल होती ललाट पर उसके कुछ कोशिशों की  खाली जेब भरी माचिस आरज़ू कुछ न थी बस थोड़ा सा सफ़ेद धुआँ आदि हो गयी थी उस जहर की जिसे 
वो हर रोज पीती खाती और उड़ाती 
ये एक कोना मानो उसका रेस्टोरेंट था जहाँ वो तय समय पर पहुँच जाती है अकेले | 
नहीं अकेले नहीं समय और धुँए के साथ दो घंटे बिताते हुए प्रयास रहता है अपने हस्ताक्षर करने का जैसे की तमाम कागजातों को उसकी मंज़ूरी का वर्षो से इंतज़ार है उसे उन कागजो की अर्जी को मुकम्मल करना है 
हर दिन मिट्टी पर लकीरें बना और मिटाना उसका पेशा बन गया था 
आज समय से थोड़ी देर में पहुंची वो शायद मांगने में देरी हो गयी और आज धुआँ भी नहीं है उसके पास
कुछ मिला नहीं उसे आज जिससे वो उस धुएं को खरीद सकती
हस्ताक्षर करने की कोशिश भी न की हाथों में जान मालूम नहीं पड़ती उस धुएं में ही तो उसका पोषण था जो भर पेट उसे न मिला तभी एक शख्शियत द्वारा उसकी तरफ कुछ रूपये फेंके गए नज़रो को गहरा कर उसने उन रुपयों की तरफ ध्यान बरकरार रखते हुए उस व्यक्ति को उसकी तिलिस्म वापस कर कहा -
साहब ! मैं भीख नहीं लेती बस मांग कर गुज़ारा कर लेती हूँ
उसके इस जवाब ने दिमाग में एक कौंध करते हुए चिंगारियों की ऐसी अलख सी जगा दी स्वाभिमान की बात को उसने अपनी ढाल बनाते हुए ज़माने को एक तमाचा जड़ते हुए अपनी बेबसी जाहिर न होने दी
और फिर शायद वो पूरी तरह तैयार थी अपने हस्ताक्षरों के साथ एक अमिट छाप
एक औरत की ललकार। 

Sunday, July 7, 2019

दुनिया से रूबरू होने का अस्क मैने बचपन में ही पी लिया था कहते है दुनिया घूमना आसान नहीं पर मैंने कर दिखाया मैंने तमाशे भी देखे और मेले भी सौभाग्य से  ये अवसर मेरे जन्म के दिन ही मुझे मिल गया जब मेरे पिता ने मुझे गोद में उठाया उनके एक एहसास ने बेमूल्य ख़ुशी दी
उनकी गोद में ही दुनिया का एक आधा चक्कर लगा दिया पहला कदम जब धरती पर रखा तो चारों तरफ एक घेरा था घेरे में बँधे हुए पापा के हाथ जो आज तक बँधे हुए है घेरा जो कभी खुल नहीं सकता था जिसमें प्रवेश करने के असीमित तहजीब और तवज्जो ने रियायतों ने कोशिश की समाज नाम के एक बड़ी सियासत ने मुझ पर हुक्मों का दौर चलाने की कोशिशों में कमी न छोड़ी  नज़रों के शहरों से गुजरकर भटकती गलियों से मंज़िलो को पकड़ना आसान न था लेकिन वो घेरे ही थे जो हर प्रहार को रोके हुए थे मेरी हँसी शरारतें मेरी गलतियां सब उस घेरे में समायी थी मेरे गिरने की जो टीस पापा के दिल में समायी थी आज तक छुपी हुई है
कभी जाहिर न होने दिया
हर एक सीख जो आज तक मिली मेरे जेहन ने अपने आप में बसा ली कुछ इस तरह की अब चाहे कितने भी मोड़ भटकाव आये इस पर चलना जिद है मेरी क्योंकि वो बहुत अजीज है मेरे लिए
पापा दो शब्द नहीं दूसरे जन्म के पुण्य है जो अब मिले है
खुशनसीब हूँ की मेरे पास दो शब्द  है अब दौर कुछ बदल सा गया है घेरा कुछ खुला सा है या पापा के हाथ कमजोर पड़ गये
कमजोर हो समाज की सियासत से बचाते बचाते मुझे कुछ यूँ आपको लकीरों में देख कर आँख भर आती है
फिर सोचती हूँ पापा समझ गए में अब बड़ी हो गयी हूँ मुझे आसमान में उड़ना है पर अकेले इन तमाशगिनो के बीच से होकर गुजरना आसान न होगा पर आपकी दी तालीमों ने मेरे फितरत को इतना मजबूत बना दिया है कि उसको छू पाना भी रियासतों की पहुंच में नहीं
पापा आज मुझे डर सा लगा है घेरा कुछ खुला खुला सा है दस्तक को का दौर है जिसकी कल्पना भी मेरे शब्दों के परेह है
कितना अजीब सा दुःख है इस समाज की सियासत में हर दिन एक नया नियम आएगा हर दिन एक लड़की को उसके पिता से अलग होना पड़ेगा
उम्मीद है
जज्बा कायम रहेगा
यूँ ही आशीर्वाद बना रहे
यादों का कारवां चलता रहेगा 

Sunday, May 5, 2019

बेबसी 

माँ वो अनगिनत पृष्ठों की किताब है जो जितनी बार पढ़ी जाती है उतनी बार एक नयी कहानी गढ़ती है  हर एक पन्ना कीमती होता है अगर कभी यही किताब खो जाये तो रोशनी के बावजूद अँधेरा होता है कुछ ऐसा ही बयां कर रहे थे उसके आँसू  आज क्लास में जब बहुत दिनों बाद आयी तो मैडम ने पूछा सोनिया इतने दिनों बाद इतनी छुट्टी क्यों करती हो कोर्स कैसे होगा  कुछ पल को सहम सी गयी और बोली मैडम दादी मना कर देती है  घर का सारा काम मुझे करना पड़ता है उनके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा मैं ही हु मैडम तेज आवाज में बोली अपनी दादी से मेरी बात कराना मैं समझाउंगी अभी से इतना काम करोगी  तो पढ़ोगी  कब कल से तुम्हे हर रोज आना है |  ठीक है मैम कल से हर दिन आएंगे और रोने लगी  उसका रोना देख कर लग रहा था जैसे सालों से इंतज़ार कर रही थी रोने का  हर एक सुबकी में दर्द छुपा था और शायद ख़ुशी भी थी कि आज किसी ने तो हमदर्दी दिखायी उसका हर एक आँसू उसकी बेबसी का सबूत था 
वो बेबसी जो आज तक किसीसे कह नहीं पा रही थी आज उसने बता ही दिया 
तीन साल की थी जब उसकी माँ इस दुनिया को छोड़कर चली गयी पापा ने दूसरी शादी की और अलग हो गए दादी की तालीम से बड़ी हुई है दादी की भी अब उम्र हो चली थी कहने को बड़े भाई और भाभी है पर वो जल्लाद से कम नहीं है किस्मत खराब होती है सुना था पर खाली भी होती है आज देख लिया | 
उसके आँसू बांटकर सुकून भी था और गुस्सा भी की ६ महीने से वो क्लास में आ रही थी पर आज तक मैं उसके दुःख को नहीं देख पायी उसका हर एक आँसू भाभी के अत्याचार के बोझ तले दबा हुआ था आज घर जाकर उसको थोड़ा हल्का महसूस हुआ होगा इतने दिनों बाद रोयी थी भाभी कुछ भी काम नहीं करती है छोटा भाई ठेला लगाता है दादी बुजुर्ग है उनका भी काम मुझे करना पड़ता है उसके अंदर एक तूफ़ान सा दबा  हुआ था  जो आज 
बह रहा था पूरी क्लास शांत उसकी बेबसी को सुन रही थी मैडम ने कहा तुम अपने बड़े भाई को समझाओ और मना कर दो मैडम ने फिर कहा जब तक तुम आवाज नहीं उठाओगी तुम्हें ऐसे ही काम करना पड़ेगा उसे थोड़ा हल्का महसूस हुआ होगा ठीक है मैं बोल दूँगी धीरे से कहा मैडम ने फिर कहा ऐसे काम नहीं चलेगा तेज आवाज उठाओ सोनिया फिर रोने लगी उसके अंदर से आवाज आ रही थी आज मुझे रो लेने दो वह दादी के लिए और दादी उसके लिए अत्याचार सह रहे है जब से माँ छोड़ कर गयी है दादी ही माँ बाप दोनों है 

Monday, April 22, 2019

इंतज़ार 


" इंतज़ार को कुछ होना यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी ये सोचा नहीं 
हवा के दरख्ते में जब वो बहेगा 
तो फूलों के महकने की मंज़ूरी 
उसे न मिलेगी "
"किरणों की तलहटी में इंतज़ार 
को छुपना कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी ये बतलाया ही नहीं 
चाँद की रोशनी में जुगनुओं को 
भी उसकी मंज़ूरी न मिलेगी "
"आसमान को छूना इंतज़ार को 
कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी उड़ान भरी ही नहीं 
या कि पंछियों के सुरों को 
उसकी मंज़ूरी न मिलेगी "
"अनुभवी होना इंतज़ार को 
कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी गलतियाँ की ही नहीं 
या कि बचपन के खेलों को 
उसका न होना मंज़ूर न था
"बेलीक चलना इंतज़ार को कुछ यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी सीमाएं लांघी नहीं
या कि नदियों के धैर्य को उसका
न होना मंज़ूर न था "
"पलकों पर बैठना इंतज़ार को कुछ
यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी झपकियाँ ली ही नहीं
या कि टूटी नींद के सपनो को
उसका न होना मंज़ूर न था "
"कदम-दर-कदम इंतज़ार को होना
कुछ यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी रास्ता नापा ही नहीं
या कि मंज़िलो के ना होने की
मंज़ूरी उसको न मिलेगी "


Sunday, March 24, 2019

स्याही 


स्याही बिना कलम अधूरी
है की अधूरे से कदमो से
कलम की स्याही पूरी नहीं होती
रास्ते जो अधूरे से है
कुछ मेरे भी तो सोचा
कलम से उतारू कागज
के पर्दो पर
कलम जो भरकर चली थी
अपने स्याही के अस्तित्व से
कभी इस रंग में बुनी थी
कभी उस रंग में ढली थी
मिटा निशान सा छोड़ चली थी
थी कलम या स्याही कलम थी
स्याही डूबी पहचान कलम थी
मंज़िलो का दर्पण स्याही है
जो कलम से बनती है
उभर कागज पर क्या खूब छपती है
सफ़ेद कागजी पन्नो पे
रंगीन पहचान बनी थी|| | 


Wednesday, February 20, 2019

खामोशी भरे अँधेरे हो गये

खामोशी भरे अँधेरे हो गये
जहाँ हुए शहीद तुम
वो रास्ते भी अमर हो गये
बलिदानी हुई तुम्हारी और
फूल तुम्हारे शहीद हो
 गयेमुखाग्नि मिली तुम्हें
अमरता के कदम अग्नि के हो गये
गोलियाँ सही वर्दी पर तुमने
शौर्य की कहानी ध्वज हो गये
मौत के खिलाड़ी बने तुम और
जीत के जयकारे लकीरों के पार हो गये
चौखट-दर-चौखट बचाने को
आसियाना छोड़ा तुमने और
इंतज़ार सूनी मांग के हो गये
धरा रंगी खून से तुम्हारे
रोशन सवेरा आसमानी हो गये
कोख सूनी हुयी माँ की तुम्हारी
 जयकारे भारत माँ के हो गये
परिंदो की आजादी बने तुम
जंग-ए-दासता कलम के हो गये
ताबुओ में गुजरा जीवन तुम्हारा
इतिहासी चिन्ह समाधि के हो गये
भूमि के वास्ते राख बने तुम और
शोभा ललाट पर चन्दनी तिलक हो गये
एक अकेले कुछ यूँ गये तुम
अमर जवानी सबके नाम  कर गये
ए वीर तुम भारत माँ के लिए शहीद हो गए 
ए वीर तुम भारत माँ के लिए शहीद हो गए

लकीरें खींच गयी मुल्क में
बाँट लिया गया आसमान
धोखे और छल ने लूटी
समाज की इंसानियत
वतन की आजादी को कायम
सरहद के ताबुओ में है
माँ का इंतज़ार ,
माँ के आँचल को तड़पा तो
खाक-ए-सुपुर्द हुआ
लघु बह गया बनकर कुर्बानी
उड़ी पतंग जैसे कटी डोर जिंदगी की
हाथ आयी बन तिरंगा ,
और रह गयी बस एक निशानी || 

Saturday, February 16, 2019

क्या लिखुँ जहाँ एक और देश के वीर जवान साजिश का शिकार हो गए है वही दूसरी ओर युवा श्रद्धांजलि दे रहे है
श्रद्धांजलि शब्द बहुत छोटा लग रहा है उनकी शहादत के आगे सोशल मीडिया पर आक्रोश जताया जा रहा है  जवानो को नमन किया जा रहा है  और असल जिंदगी में शाहगर्दी के बाद भी valentine day  मनाया गया
शहीदों की अमरता लिखुँ शहादत लिखुँ बूढ़ी माँ का विलाप लिखुँ या अपनी कायरता लिखुँ जो हम हाथ पर हाथ  रखे बस  श्रद्धांजलि दे रहे है  क्या शहीदों की कुर्बानी किसी व्याख्यान की मोहताज़ है या फिर किसी श्रद्धांजलि की  श्रद्धांजलि देने से पहले जाकर देखो उनकी चौखट पर वर्षो का इंतज़ार मिलेगा देखो उस सुनी माँग को जो  अब इंतज़ार भी नहीं कर सकती 

Tuesday, February 5, 2019


प्रकृति की जड़ चेतना को पकड़ने की होड़ इंसान को क्या ही समझ आएगी जब उसे खुद से किये वादों के लम्हें ही हर आईने के सामने बदलते नजर आते है 


Friday, January 18, 2019

कोमल पखुंडिया और कठोर रास्ते जो चल पड़े एक मंजिल जहाँ उनकी खूबसूरती फीकी तो न हुई पर जिन हवाओ के सहारे बहना था उन्हें एक तूफान का सा सबब बन हवाओं ने उनके वजूद को हिला दिया पर खुशबू आज भी रूह तक समायी है हौसला ए बुलंद के साथ 



Wednesday, January 16, 2019

कहाँ तो आसमान छूना था मुझे 

कहाँ तो आसमां छूना था मुझे
कहाँ दो फुट जमीन खोदी गयी मेरे लिए
कहाँ तो जमाने से बचाया मुझे
कहाँ मेरे अंदर के जमाने को  मारा गया
कहाँ तो भीड़ से बचाने का वायदा था
कहाँ भीङ मुझे ही बना दिया गया
कहाँ तो  नन्ही सी परी हूँ मैं कहा गया
कहाँ शैतान बन पंख काटे गए मेरे
कहाँ तो कंधे पर सैर करने की जिद थी मुझमें
कहाँ तो अब उँगली पकड़ने से भी डर लगता है
कहाँ तो नन्हे कदमों की आहट
से शोर मचाना था मुझे
कहाँ हवस की बेड़िया डाली गयी
कहाँ तो ईमान का पाठ पढ़ाना था मुझे 
कहाँ ईमान के सौदागरों को बेचा गया मुझे 
कहाँ तो सविंधान पढने की हिदायत दी 
कहाँ किताबों की बोली लगायी गयी 
कहाँ तो आँखों का तारा रखना ख्वाब था 
कहाँ महफिल की नुमाइश बना दिया मुझे 
कहाँ तो हाथो में मेहंदी लगनी थी मेरी 
कहाँ अपने हाथों को मेरे खून से रंगा गया 
कहाँ तो देश दुनिया की सैर कराने का वादा था 
कहाँ मुझे दुनिया से अलग कोख में मारा गया !!!!!


बेचेहरा स्याह रातें
बेबाक इस दुनिया में
तरकश भूमि जिसकी
मिट्टी हाथों से फिसली
रगों में अंगार भरती चली
वीरो की भूमि है ये ,
बंजर होके भी कभी
बुजदिल पैदा नहीं करती ,
शीश चढ़ाया अपने लाल का
ओढ़ी चुनर लाल खून से सनी
थामे लगाम हाथ में ,
निकल पड़ी परवाह दौड़ी
रगो में खुद से पहले देश की
कराया  नतमस्तक रुतबे को
चिंगारियों की मातृभूमि को 

शौर्य तुझे हो जाना है 


तारों भरी सुबह है
झिलमिलाते रास्ते है
नयी कोपे फूटने को है
तुझे नयी मिसाल दागनी है
पथ से तु न डगमानना
विध्वंस की सीमा पार कर
शौर्य तुझे हो जाना है
बेमिसाल कहुँ या कि
बेहिसाब से जो उलझने है
सुलझी सी जो उलझने है
स्वंय प्राण की जो चेतना
तुझे पुकार रही है
वाणी से जो तुझे
तेरे भीतर दहका रही है
इतिहास के पन्नों में लिखी
जो वीर गाथा का प्रमाण है
प्रमाण नहीं वो तो शूरवीरों
का मातृभूमि के लिए त्याग है
जिस तप के लिए तड़पा हर
पिता हर सोमवार है
और माँ जिसने अपना दूध
मिट्टी को सौंप दिया
तुझे उस रज के लिए
वीर हो जाना है
पथ से तु न डगमगना
शौर्य तुझे हो जाना है 


जीत भी तु,तेरी हार भी तु 

जीत भी तु,तेरी हार भी तु
है अगर आग तो पानी भी तु
तेरे हर वार में जिन्दा है तु
तेरी हर साँस पे लिखा फौलादी है तु
तेरा मान भी तु तेरा स्वाभिमान भी तु
तेरी हर वीरता पर लिखा अभिमान भी तु
है अगर मिट्टी भी तो जड़ें फैला अपनी ,
ना रचे फिर कायरी इतिहास कोई
ये जंग ए एलान कर तु
भाग्य भी तु विधाता भी तु
देश की खींची लकीरों का नसीब भी तु
बेड़ियों से बंधा भी तु आजाद परिंदा भी तु
पंखो से तेरी देश की उड़ान भी तु
तेरी रग भी तु ,रग का बहता लघु भी तु
दौड़े जो परवाह देश की वो भी तु
उद्धार भी तु ,आधार भी तु
अंगारे जो बरसा दे वो
दुश्मन का काल भी तु
तेरी रूह का लिबास भी तु
ध्वज तिरंगा  जो मिल जाये
तो है स्वर्ग की शान भी तु
स्वंय प्राण की चेतना है यही 
कि है एक भारतीय तु 
है एक भारतीय तु 
जय हिन्द जय भारत !!


दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...