Thursday, July 6, 2017

मंजिल 

तेरी हिम्मत न रुकेगी कभी ,
आत्मविश्वास न हारेगा कभी ,
अनुभव की सीढ़ियों पर ,
न डगमगायेगा तु कभी ,
पथरीली सी आखों में ,
मंज़िलो की गहराई में ,
भरेंगे उड़ान तेरे बादल ,
भी कभी ,
जर्जर भूमि तेरे लफ्ज़ो की ,
दफन होती जिसमे ,
लकीरे तेरी किस्मत की ,
तेरे पग प्रस्तर की मंज़िलो 
से निकलेगी राहे भी 
रख जुनून 
रख जुनून। ,
 

माँ

माँ 

क्या कहुँ उस नायब के लिए,
जिसने कभी अपनी परवाह नहीं की,
परवाह की भी तो,
हमारी आबादी की ,
जिस एक शब्द में सिमटी है ,
दुनिया की सारी ताकत ,
वो है माँ ,
वो माँ जो आँचल फैलाये ,
इंतज़ार करती है 
हमारी खुशियों की ,
कभी मन करता है गीत लिखुँ ,
कभी लगता है 
कच्ची धूप बुनु ,
तभी माँ ने पुकारा ,
तो लगा ,
ये सब तो मिथ्या है 
उसके आगे ,
माँ हो तो दुनिया घुमती है ,
माँ के बिना कहा धूप ,
खिलती है ,
कभी न चुका पाऊ तेरा ,
ऋड़ में माँ ,
ममता के इस ऋङ को ,
कम न होने देना माँ ,
माँ में सिमटे जग के रिश्ते ,
रिश्तों से सजी एक शाम ,
शाम के उस पहलु ,
सजेगा एक ही नाम ,
वो है माँ।

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...