Saturday, May 27, 2023

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों से अब पूरा घर जगमग जगमग करता है सुबह से रात तक बस तुम्हारी ही आवाज़ गूँजा करती है ,कभी खिलखिलाने की ,कभी रोने की ,कभी हॅसने की |  अब तुमने अपने पैरों पर चलना सिख लिया , न जाने कितनी बार गिरे , गिरकर उठे और कोशिश की और आखिर में अब  चलना क्या दौड़ लगाना भी बख़ूबी सिख लिया है 

पिछली चिट्ठी मैंने अपने अहसासों को तुम तक तक पहुँचाने की कोशिश की लेकिन अब तुम्हारा बचपन इतना बड़ा हो गया कि हर दिन के अलग अलग किस्से है, कभी किसी दिन तुमने रसोई की अलमारी खोल दी और सारे बर्तन उसके बाहर निकाल दिए या कहुँ ये तुम्हारा सबसे प्यारा काम हुआ करता था जिस पर मुझे अक्सर झुंझलाहट आती थी और मैं गुस्से से तुम्हें उठाकर तुम्हारे खिलौनों के पास बैठा दिया करती थी पर जब तक मैं वापस रसोई तक पहुँच पाती कि तुम मेरे पीछे खड़े होते , अरे ! इतनी जल्दी , अभी तो बैठाया था और फिर हसीं की फ़ुहार के साथ तुम्हें गोद में उठा लेना , दूसरा सबसे प्यारा काम भगवान जी के मंदिर से उनकी मूर्ति को ही उठा लाना कभी तो उनको सिंघासन से निचे ही गिरा देना यह सब शायद तुम्हारे मन में उठे उत्सुकता के बीज थे जो अब धीरे - धीरे पनप रहे है कि मन्दिर में जाते ही सबसे पहले प्रणाम किया जाता है ,फिर दंडवत जो अब बिना बताये करते हो और सीख भी रहे हो जीवन के ढंग को | 

जब भी तुम्हें पढ़ने के लिए बोलती हूँ या मैं कहती हूँ कि वन बोलो अच्छा एक बोलो और तुम इधर उधर देखकर मुझे गले लगा लेते हो और इतना प्यार जताते हो , कभी तो अपना सिर तकिया पर रखकर झूठ मूठ के खर्राटे भरते  हो ऐसे जताते हो कि बस अब तो नींद आ ही गयी है मुझे अपने साथ खेल में लगा करके अपनी जीत का जश्न मनाते हो कि आज तो पढ़ाई से बच गया , मुझे हारकर भी इतनी ख़ुशी मिलती है जैसे पूरा आसमान जीत लिया पर हाथ मेरे अभी भी खाली है और मैं भी बस चलो कोई बात नहीं ऐसे ही धीरे -धीरे मन लगेगा कहकर छोड़ देती हूँ 

बीमार होने पर जब अपनी दवाई तकिये के नीचे छुपा करके उस पर लेट जाते हो तुम्हारी ये नादान चालाकियाँ देख कर हसीं आती है और समझ आता है कि कैसे तुम खुद को होशियार मानने लगे हो और अभी से मुझे बनाने लगे हो फिर मुझे पास आता जो खिलखिला कर हॅसते हो मानो लगता है कि अभी - अभी दिनकर ने कोमल किरणों से उजियारा कर दिया हो और नन्हीं कलियों ने खिलकर कुसुम का रूप लिया है 

ईश्वर की बनाई कितनी अनमोल रचना है एक माँ 

और इस रचना के साथ ही न जाने कितने कौशल उसके भीतर छुपे रहते है कि कैसे तुम्हारे बिना स्पष्ट शब्दों को में इतनी कुशलता से जानना सीख लिया , तुम्हारे आने से मुझे मेरे छुपे कौशल भी मालूम हो रहे है तुम्हारे शब्द बेहद ही कोमल और मन को सुकून देने वाले होते है |  क्योंकि तुम्हारा स्वाभाव  अभी बहुत ही ज़िद्दी है तो तुम्हारे ज़िद की सीमा मेरे धैर्य की सीमा को पार कर जाती है तो  मेरा हाथ तुम्हारे ऊपर उठ जाता है और फिर तुम्हारी आँखों में ,जो चमकते सितारे की तरह दमकती है छोटे -छोटे आँसु निकल आते है जो तुम्हारे कोमल गालों को इस तरह गिला करते है जैसे गुलाब पर ओस फिसल आयी हो उन बूंदो के साथ मैं भी पिघल जाती हूँ सीने से लगाकर - अच्छा ठीक है पहले चुप हो जाओ कहकर तुम्हारी सभी बातें मान लेती हूँ तो तुम भी सब कुछ भूलकर आगे बढ़ जाते हो लेकिन मेरे मन में बहुत कुछ कौंध कर जाता है वो ये मैंने तुम्हें क्यूँ मारा ,हुआ वही जो तुम्हें चाहिए था पर अगर इसी तरह तुम अपनी बात मनवाते रहे तो ये तुम्हारे लिए अच्छा साबित नहीं होगा | 

तुम्हारी नादान चालाकियों के किस्से इतने सुहावने होते है की घर का मौसम बदल जाता है जैसे कल की बात है सुबह तुमने हलवा अपने बाबा के पास बैठ कर खाया  और उनसे पूछा भी नहीं कि बाबा खा लो लेकिन जब तुमने खीरा खाया तो बाबा को भी खिला दिया उनके मना करने पर भी जबरदस्ती खिलाया फिर तुम्हारे बाबा का कहना -: कि कितना चालाक है हलवा की तो मुझसे पूछी भी ना , जै खीरा हमें खिला रहा है बढ़िया माल खुदने खाये ,खीरा हम खाये , पर यहाँ तुम्हारे मन को समझना जरूरी है क्योकि तुमने शायद बाबा को सुबह हलवा खाते नहीं देखा है, तुमने उन्हें रोज खीरे को खाते देखा है तो अभी तुम्हारा मन देखी हुई स्थिति को ही समझ सकता है इसलिए शायद तुमने उन्हें वही दिया,  और अगर दूर से आ जाए आवाज तुम्हें chunnu की तो जो खुशी चेहरे पर दिखती है जैसे दूर कहीं आसमाँ से तारे तोड़ लिए हो पापा के घर आते ही समझ जाते हो की ice-cream आयी है और जो पापा न लाये हो तो भी खुशी कम नहीं होतीं फिर पापा के ऊपर बैठ कर जो मस्ती तुम करते हो जैसे पापा नहीं खिलौना मिल गया है |

मेरी चिट्ठियों को समझने में तुम्हें अभी बहुत समय लगेगा, पढ़ने तो तुम जल्दी लग जाओगे,  लेकिन समझने के लिए एक लंबा इंतजार मेरे हिस्से में आएगा और मैं उस इंतजार को सब्र के साथ बांधे रखूंगी, आशा रखूंगी कि बदलते ज़माने के साथ तुम्हें मेरी ये चिट्ठियां फिजूल न लगे, कथा कहानी न लगे  ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसे ही अनेकों नादान किस्से हर घर में आए |

Tuesday, March 28, 2023

निःशब्दता

शादी के एक हफ़्ते बाद -:   नया घर , नये रिश्ते , नयी रिवाज़ , नया पहनावा , नये चेहरे और मैं भी बिल्कुल नयी सी थी , उस दिन शाम ४ बजे जब मैंने अपने साथ लाया कार्टून खोला तो , उसमें अब तक जमा की गयी मेरी कुछ किताबें थी जो मुझे बहुत प्रिय थी , मेरी सास ने जब वो किताबें देखी ,तो मैं उनका चेहरा देख रही थी बिल्कुल शून्यता थी दोनों चेहरों पर , पता नहीं क्या होगा , मेरे मन मस्तिष्क में सब कुछ जैसे थम सा गया हो , बिल्कुल शान्त थी मैं  | फिर उन्होंने जो कहा उसको सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी , मेरी सोच से इतने परे थे वे शब्द जो शायद एक तूफ़ान को भी झकझोर दे , किसी भी अस्तित्व को जड़ से हिलाने  के लिए वे शब्द इतने मुलाज़िम थे कि शायद वर्षो तक आपके ज़हन में कंपन पैदा कर जाये |  प्रेमचंद जी की एक बात मुझे बहुत याद आती है " औरत कुछ भी सहन कर सकती है पर मायके की निंदा असहनीय है " |                                                                                                                                                                       उस दिन जो मैंने उनसे सुना वो शायद मेरे ही नहीं बल्कि शिक्षा जगत के अस्तित्व को कमज़ोर करने लायक है , सवालों का सबब तब से लेकर आज तक मेरे मन में उमड़ रहा है , उस दिन जो शब्द कहे गए थे वे किताबों के जगत को आश्चर्य में डाल देने वाले थे , मुझे नहीं पता कि वो समय गलत था अपनी किताबों को अपनी अलमारी में रखने का , या  मैं गलत थी जो मैंने अपनी माता -पिता की बात को अनसुना कर दिया जो उन्होंने मुझे मना किया था अपने साथ किताबें ले जाने को , क्योंकि शायद उन्होंने पहले ही भाप लिया था कि अगर मैं अपने साथ किताबें ले जाऊँगी तो मुझे ऐसी िस्थति का सामना करना पड़ेगा जिसके लिए मैं बिल्कुल तैयार न थी |  मेरी प्रिय किताबें , जिन्हें पढ़कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठता है , जो मुझे हर दिन चुनौतियों से लड़ने की शक्ति देती है , जो मुझे बताती है कि मुझे खुद को सवारना है , जो मुझे मेरे होने का एहसास दिलाती है , जो मुझे अकेला महसूस नहीं होने देती , जो मेरे अंतर्मन में कोमलता का भाव बनाये रखती है , जो मुझे द्रढ़ता प्रदान करती है उनके लिए मैं इतनी कठोर बात कैसे सहन कर सकती हूँ , या मैंने सहन की उस पल में और चुप रह गयी , उस वक़्त मेरी कोमलता शीशे की तरह बिख़र गयी और मैंने ठान लिया कि मेरी चुनौतियों का समय अब शुरू हो चुका है , आज से मेरी परीक्षा का समय है , हर दिन एक नयी चुनौती , जिसमें मैं अपनी पूरी कोशिश  करुँगी , उस दिन से आज तक मैंने अपनी कोशिशों को कभी विराम नहीं दिया और आगे भी नहीं ,ये सब इसलिए नहीं कि मुझे उनसे बदला लेना है या उनको जबाव देना है , जबाव मेरे पास उस दिन भी था और आज भी है  बल्कि इसलिए कि जिनके अस्तित्व पर ऊँगली उठाई है , अपने साथ लाने पर उनके सहारे मैं ख़ुद को खड़ा कर पाऊं |                                                                                                                                                                           और आखिर में वो शब्द थे -: "तुम्हारे बाप ने दहेज़ में सिर्फ़ तुम्हें किताबें दी है "  ये शब्द लिखते हुए मेरे हाथ काँप रहे है  पर क्यूँ ? सवाल -: शादी के बाद अपने साथ किताबें लाना गलत है  ? या मेरे पापा ने फ्रिज और सब सामान नहीं दिया वो गलत है ? क्या किताबें इतनी तुच्छ वस्तु है जो दहेज़ में नहीं जाती है ? या एक जो मेरे मन में कौंध कर जाती है वो ये कि जिस घर में किताबों के आने पर दहेज़ की बात उठायी जा रही है क्या वो घर सही है ? 

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...