Monday, April 22, 2019

इंतज़ार 


" इंतज़ार को कुछ होना यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी ये सोचा नहीं 
हवा के दरख्ते में जब वो बहेगा 
तो फूलों के महकने की मंज़ूरी 
उसे न मिलेगी "
"किरणों की तलहटी में इंतज़ार 
को छुपना कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी ये बतलाया ही नहीं 
चाँद की रोशनी में जुगनुओं को 
भी उसकी मंज़ूरी न मिलेगी "
"आसमान को छूना इंतज़ार को 
कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी उड़ान भरी ही नहीं 
या कि पंछियों के सुरों को 
उसकी मंज़ूरी न मिलेगी "
"अनुभवी होना इंतज़ार को 
कुछ यूँ मंज़ूर था 
कि उसने कभी गलतियाँ की ही नहीं 
या कि बचपन के खेलों को 
उसका न होना मंज़ूर न था
"बेलीक चलना इंतज़ार को कुछ यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी सीमाएं लांघी नहीं
या कि नदियों के धैर्य को उसका
न होना मंज़ूर न था "
"पलकों पर बैठना इंतज़ार को कुछ
यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी झपकियाँ ली ही नहीं
या कि टूटी नींद के सपनो को
उसका न होना मंज़ूर न था "
"कदम-दर-कदम इंतज़ार को होना
कुछ यूँ मंज़ूर था
कि उसने कभी रास्ता नापा ही नहीं
या कि मंज़िलो के ना होने की
मंज़ूरी उसको न मिलेगी "


दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...