चाँद
उस रोज थी में
ख्वावों की पनाह में
ढलते सूरज की हसरत
बिखेरे परछाई मुझ पर
रंग बदल बदल कर
गिरे आँसू मेरे
वजह थी क्या बता
सका न वो चाँद भी
दस्तक वो आहट सी
रुखी बाते कर गुजर गया वो
आँखो में झरोखों सी
बात बुन गया वो