बदलाव
उषा की लालिमा को ,
सफेद चादर से ढकते देखा है
धुंध में चिड़ियों की चहचाहट
को दबते देखा है,
उगते सूरज की लहरों में
बर्फ को बहते देखा है
हारिल को पग पग फिरते देखा है
ओस की बूंदों को सूखे पत्तियों
पर फिसलते देखा है
तपती दुपहरी के बीच ललाटपर
लकीरों को खींचते देखा है
लकीरो के गर्त में आंसुओ
की वजह को दबते देखा है
है पानी के बुलबुले सा जीवन
आज उसी जीवन को उर्द्धन्द ज्वाल
में शान्त होते देखा है
सदिया गुजर गयी सहारा
बनाते बनाते, उसी सहारे को
सर जमीं पे शहादत ऐ
कुर्बान देखा है
छोटी इमारतों में दबे ऊँचे सपने
उस इमारत को द्रष्टि दी
जिन हाथो ने
आज उनकी सर की छत से
पानी टपकते देखा है
दो वक्त की रोटी को
वर्ष भर खेत में देखा है
कहते जिसे सोने की चिड़िया
आज उस देश के किसान को
कर्ज में डूबते मरते देखा है
सुना है कभी इस देश को '
विश्व गुरु की उपाधि दी थी
पर यह क्या
गुरु को शिष्या की आबरू
सरे आम करते देखा है
देश की शक्ति को
लघु लुहान देखा है