Friday, May 18, 2018

बूँद

बूँद 


तबके सुबह के अंधेरों में
कल इसकी रोशनी से
चमकेगी ओस के
जैसी ज़िन्दगी
जो छलक कर जाये
पतियों पर गिरे ,
या अठखेलियां करती
मासूमियत लहरों में
स्याह रातो की गर्त
से निकले आबाद
उस जमाने की
तहजीबों के पैमाने से
नापेगी गहराई उस
उम्र की जो बात
 बात पर रूठे या
खिल उठे थाम के
दामन खुबसूरत कहानी
के आँचल को
जो सिहर उठेगी
इस निस्पंदन जगत में
तूफान लिए !

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