बूँद
तबके सुबह के अंधेरों में
कल इसकी रोशनी से
चमकेगी ओस के
जैसी ज़िन्दगी
जो छलक कर जाये
पतियों पर गिरे ,
या अठखेलियां करती
मासूमियत लहरों में
स्याह रातो की गर्त
से निकले आबाद
उस जमाने की
तहजीबों के पैमाने से
नापेगी गहराई उस
उम्र की जो बात
बात पर रूठे या
खिल उठे थाम के
दामन खुबसूरत कहानी
के आँचल को
जो सिहर उठेगी
इस निस्पंदन जगत में
तूफान लिए !
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