Sunday, July 7, 2019

दुनिया से रूबरू होने का अस्क मैने बचपन में ही पी लिया था कहते है दुनिया घूमना आसान नहीं पर मैंने कर दिखाया मैंने तमाशे भी देखे और मेले भी सौभाग्य से  ये अवसर मेरे जन्म के दिन ही मुझे मिल गया जब मेरे पिता ने मुझे गोद में उठाया उनके एक एहसास ने बेमूल्य ख़ुशी दी
उनकी गोद में ही दुनिया का एक आधा चक्कर लगा दिया पहला कदम जब धरती पर रखा तो चारों तरफ एक घेरा था घेरे में बँधे हुए पापा के हाथ जो आज तक बँधे हुए है घेरा जो कभी खुल नहीं सकता था जिसमें प्रवेश करने के असीमित तहजीब और तवज्जो ने रियायतों ने कोशिश की समाज नाम के एक बड़ी सियासत ने मुझ पर हुक्मों का दौर चलाने की कोशिशों में कमी न छोड़ी  नज़रों के शहरों से गुजरकर भटकती गलियों से मंज़िलो को पकड़ना आसान न था लेकिन वो घेरे ही थे जो हर प्रहार को रोके हुए थे मेरी हँसी शरारतें मेरी गलतियां सब उस घेरे में समायी थी मेरे गिरने की जो टीस पापा के दिल में समायी थी आज तक छुपी हुई है
कभी जाहिर न होने दिया
हर एक सीख जो आज तक मिली मेरे जेहन ने अपने आप में बसा ली कुछ इस तरह की अब चाहे कितने भी मोड़ भटकाव आये इस पर चलना जिद है मेरी क्योंकि वो बहुत अजीज है मेरे लिए
पापा दो शब्द नहीं दूसरे जन्म के पुण्य है जो अब मिले है
खुशनसीब हूँ की मेरे पास दो शब्द  है अब दौर कुछ बदल सा गया है घेरा कुछ खुला सा है या पापा के हाथ कमजोर पड़ गये
कमजोर हो समाज की सियासत से बचाते बचाते मुझे कुछ यूँ आपको लकीरों में देख कर आँख भर आती है
फिर सोचती हूँ पापा समझ गए में अब बड़ी हो गयी हूँ मुझे आसमान में उड़ना है पर अकेले इन तमाशगिनो के बीच से होकर गुजरना आसान न होगा पर आपकी दी तालीमों ने मेरे फितरत को इतना मजबूत बना दिया है कि उसको छू पाना भी रियासतों की पहुंच में नहीं
पापा आज मुझे डर सा लगा है घेरा कुछ खुला खुला सा है दस्तक को का दौर है जिसकी कल्पना भी मेरे शब्दों के परेह है
कितना अजीब सा दुःख है इस समाज की सियासत में हर दिन एक नया नियम आएगा हर दिन एक लड़की को उसके पिता से अलग होना पड़ेगा
उम्मीद है
जज्बा कायम रहेगा
यूँ ही आशीर्वाद बना रहे
यादों का कारवां चलता रहेगा 

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...