स्याही
स्याही बिना कलम अधूरी
है की अधूरे से कदमो से
कलम की स्याही पूरी नहीं होती
रास्ते जो अधूरे से है
कुछ मेरे भी तो सोचा
कलम से उतारू कागज
के पर्दो पर
कलम जो भरकर चली थी
अपने स्याही के अस्तित्व से
कभी इस रंग में बुनी थी
कभी उस रंग में ढली थी
मिटा निशान सा छोड़ चली थी
थी कलम या स्याही कलम थी
स्याही डूबी पहचान कलम थी
मंज़िलो का दर्पण स्याही है
जो कलम से बनती है
उभर कागज पर क्या खूब छपती है
सफ़ेद कागजी पन्नो पे
रंगीन पहचान बनी थी|| |