और बुलाकर पूछती रही
बोल क्या ख्वाइशें है आज तेरी
असमंजस थी मन में, इरादे कुछ और थे दिल में
पूछु एक बार ज़िंदगी से
क्या आज फिर वो मेरा मजाक बनाने आयी है
शायद कल की ही बात थी
जब एक नन्ही सी ख़्वाइश ने जन्म ही लिया था
अभी तो आँखे खोलना शुरू ही किया था
वक्त के बन्धनों ने ऐसा जकड़ा
मानो बिखर सी गयी हो हर एक साँस
उड़ से गए हो तक़दीर के हर एक पन्ने
पूछा फिर मैने अपने आप से उस रोज
क्यूँ और कब तक मरती रहेंगी ख्वाइशें
बातें ये सारी जिन्दगी को बताने वाली थी
कब शाम ढली और जिन्दगी चली गयी
लो आज फिर मेरी ख्वाइश अधूरी रह गयी.......