Wednesday, March 8, 2017

जिंदगी

जिंदगी
सूरज की पहली किरण सी,
चन्द्रमा की आखिरी रोशनी में,
है बिखरी सी ये जिंदगी
है नहीं वो रुका हुआ पानी
तालाब का बहती धारा नदी की
तुफान है समुद्र का ये जिंदगी
छिपी नही उस बादलों की
काली परछायी में खुले
आसमान की तरंगे है ये जिंदगी,
है नहीं सूखे पत्तों सी, मजबूत नीव
है पेड़ों की ये जिंदगी,
आँधियों की सरसराहट में नहीं
है शीतल हवा के जैसी ये जिंदगी,
पिता की खट्टी डॉट में,
भाई बहन के चटपटे प्यार में
माँ की मीठी लोरी है ये जिंदगी,
चिड़ियों की चहचाहट में
नदियों की कल कल में
रात के जुगनु सी चमकती है ये जिंदगी
है नहीं ओश के बूँद की जैसी
बाढ़ का वो संघर्ष है ये जिंदगी
है नहीं रावण के अहंकार में
राम की मर्यादा है ये जिंदगी
क्या करू में इस जिंदगी से सिफ़ारिश
बड़ी अल्फ सी आवाज़ है ये जिंदगी.......




दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...