माँ
क्या कहुँ उस नायब के लिए,
जिसने कभी अपनी परवाह नहीं की,
परवाह की भी तो,
हमारी आबादी की ,
जिस एक शब्द में सिमटी है ,
दुनिया की सारी ताकत ,
वो है माँ ,
वो माँ जो आँचल फैलाये ,
इंतज़ार करती है
हमारी खुशियों की ,
कभी मन करता है गीत लिखुँ ,
कभी लगता है
कच्ची धूप बुनु ,
तभी माँ ने पुकारा ,
तो लगा ,
ये सब तो मिथ्या है
उसके आगे ,
माँ हो तो दुनिया घुमती है ,
माँ के बिना कहा धूप ,
खिलती है ,
कभी न चुका पाऊ तेरा ,
ऋड़ में माँ ,
ममता के इस ऋङ को ,
कम न होने देना माँ ,
माँ में सिमटे जग के रिश्ते ,
रिश्तों से सजी एक शाम ,
शाम के उस पहलु ,
सजेगा एक ही नाम ,
वो है माँ।
ममता के इस ऋङ को ,
कम न होने देना माँ ,
माँ में सिमटे जग के रिश्ते ,
रिश्तों से सजी एक शाम ,
शाम के उस पहलु ,
सजेगा एक ही नाम ,
वो है माँ।
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