Thursday, December 20, 2018

अस्तित्व  


राह चलते अनुभव
को ठोकर लगी तो ,
अनुभवी की गोद में जा गिरा ,
सोचा यहाँ कुछ राहत मिलेगी
एक नई दिशा ठहरेगी ,
मेरी मंजिलों की
कहानियाँ होंगी,
उम्र में लिपटा इतिहास होगा
और पूछा सफर उससे
अपने अस्तित्व का
अनुभवी एकाएक दंभ था
देख कर अपने ही अनुभव को
छ्लक ही गये आँसु आँखों से
लफ्जो की चाल बूढी हो गयी
स्थिर है वो या अस्थिर
चलती है दुनिया
जिंदगी के अंधकार से
निकले झूठी रियायतों
 के चकाचौंध में डूबे ,
अनसुनी हो जाती है
उनकी ही बातें जिनकी
शायद कभी उँगलियाँ
पकड़कर चलना सीखा ,
आँखों का तारा बनाये रखने
की जिद्द थी कभी ,
दशको गुजर आये  शायद ,
बेचेहरा हो गए सभी ,
हाथों में लकीरें न थी
तुम्हें पाने की , 
मन्नत-दर-ठोकरें 
खायी थी हमने 
आज उसी आशियाने 
का हिस्सा माँग ही लिया 
ठोकरों की चोट से 
अनुभवी सँभला 
पर, ठुकराने की 
कशक दिल से न गयी ,
देख कर अनुभव 
अपना ये हाल सोच 
अचम्भित ही था 
और हो चला अलविदा 
अपनों की ठोकरों से |







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