Monday, December 24, 2018

क्या खूब कहा है उस ग़ालिब ने
जिंदगी जीना एक कला है
आँगन के उस सूखे पेड़ की छाँव में
सूरज निकलते हमने भी देखा है
नदियों के प्रवाह सी
प्रबल ज्वाला को
दर-दर भटकते देखा है || 


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