जमीर
दो गज जमीन के लिए
उम्र भर का जमीर बेच दिया
लालचों ने इस कदर
इंसान को सौदागर बना दिया
कहते है की ये हिस्सा
उनका है की उस पर हक़
किसी और का नहीं
जरा पूछो कोई इनसे
कहते है खुद को कि
मालिक है हम
अपने ही ईमान का सौदा
कर बैठे दूसरे की जमीन छिन कर
खुद को चिराग बताते है
उस दो गज जमीन का
कहते है की उनके पुरखों
का पुण्य है
अरे जरा कोई पूछो इनसे
जो जमीन इनके पुरखों को
न बचा सकी
उस पर तो ये अपना
जमीर बेच आये है
क्या कौड़ी भर कीमत
भी छोड़ी है इन्होंने उस पर
पर एक शर्त ये भी है
जो छिनी है जमीन इन
जमीरदारों ने उस आँगन से
पर छिन न सके उसका आसरा
वो आज भी मालिक है
अपने उस वक़्त का
जो फिर लौट कर आयेगा
दो वक़्त की रोटी छीनने
चले है ये जमीरदार
जमीन का हवाला देकर
अरे जरा कोई पूछो इनसे
कोई पूछ ही लो आज
जिसकी जमीन छिनी है
उसके दिए किराये पर
इनकी भी तो रोटी बनती है
भूल गए वो दिन जब
उसकी हर महीने की कीमत
जिसको ये किराया कहते है
इतराते फिरते थे
अरे जाओ जमीरदारों
दुआ न मिलेगी तुम्हें
अपने ही ईमान की
जो छिन ली जमीन
उस गरीब की ||
उम्र भर का जमीर बेच दिया
लालचों ने इस कदर
इंसान को सौदागर बना दिया
कहते है की ये हिस्सा
उनका है की उस पर हक़
किसी और का नहीं
जरा पूछो कोई इनसे
कहते है खुद को कि
मालिक है हम
अपने ही ईमान का सौदा
कर बैठे दूसरे की जमीन छिन कर
खुद को चिराग बताते है
उस दो गज जमीन का
कहते है की उनके पुरखों
का पुण्य है
अरे जरा कोई पूछो इनसे
जो जमीन इनके पुरखों को
न बचा सकी
उस पर तो ये अपना
जमीर बेच आये है
क्या कौड़ी भर कीमत
भी छोड़ी है इन्होंने उस पर
पर एक शर्त ये भी है
जो छिनी है जमीन इन
जमीरदारों ने उस आँगन से
पर छिन न सके उसका आसरा
वो आज भी मालिक है
अपने उस वक़्त का
जो फिर लौट कर आयेगा
दो वक़्त की रोटी छीनने
चले है ये जमीरदार
जमीन का हवाला देकर
अरे जरा कोई पूछो इनसे
कोई पूछ ही लो आज
जिसकी जमीन छिनी है
उसके दिए किराये पर
इनकी भी तो रोटी बनती है
भूल गए वो दिन जब
उसकी हर महीने की कीमत
जिसको ये किराया कहते है
इतराते फिरते थे
अरे जाओ जमीरदारों
दुआ न मिलेगी तुम्हें
अपने ही ईमान की
जो छिन ली जमीन
उस गरीब की ||
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