Monday, December 24, 2018

दिसंबर की धुप 

नरम धूप 
और ठण्डी छाँव 
बाँहो का फैलना 
गिनना और बुनना 
फिर रीझ जाना 
बुनते स्वेटर की 
चहलकदमी से धूप 
सेंकना था कि 
शरारतें मुट्ठी भर 
धुप छत से आँगन तक ले जाने की
वापस छत ,छत से आँगन 
और फिर से छत 
तक के सफर में 
धुप को कैद करने 
की जिद में रूठ कर बैठना 
या की चिढ़ जाना 
या चिढ़ा जाना किरणों को 
दिसम्बर की वो दुपहरी 
जब चौपाल लगे 
और परिंदो की 
कहानियो के बीच
खुली आँखों से सूरज 
को देखने की आरज़ू 
मुकम्मल हो || 

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