Saturday, November 24, 2018

शब्द 

वजह भी हूँ मैं ,
बेवजह भी शायद 
परवाह करती हूँ 
तो लिखती हूँ या 
बेपरवाह शब्दों को सवारती हूँ 
मोहब्बत है कलम से ,
तो पढ़ती हूँ कि ,
इश्क़ का मजहब बुनना 
है तो उतारती हूँ स्याही 
को कागज के परदे पर ,
जीने का सलीका सीखना 
है तो सुनती हूँ 
कि अनसुनी चीखों को 
पढ़ने का नजरिया है मुझमें ,
अनुभवी बनना है तो 
लकीरे खींचती हूँ या 
खींची लकीरों के 
पार जाना है मुझको 
बेमूल्य रिश्तों की हिफाजत 
है तो लिखती हूँ 
कि ईमान के सौदागरो 
की नज़रों से बचना है मुझे 
समय कम है तो 
बदलना है मुझे की ,
बीते समय की लड़ाईया 
जहन में जिंदा है मेरे ,
आदतन लिखती हूँ 
या की आगाज है नये 
शब्दो का शब्द जो कि 
हर पहलु में मेरे 
अंदर के मुझमें छुपे 
कहानियों के निगेहबान 
शीशे को जिसकी 
हर परछाई 
तराशती है खुद को 
मेरी कलम की बहती स्याही से 
और इस तरह ये 
बहस मेरे अंदर के 
मुझसे चलती रहेगी 
जिसके हर शब्द को 
मेरी कलम आदतन
 बेपरवाह स्याही  से 
आगाज़-ए -अंजाम देगी 





2 comments:

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...