Monday, November 19, 2018

ख्वाइश है गगन को छू लू मैं
ख्वाइश है आसमान को पा लू मैं ,
ख्वाइश है हवा के झरोखों सी
झरोखों में बहते उन तिनको सी
तिनको की उस कल कल में
कल कल करती उस आवाज में
आवाज वो चिड़ियों के चहकने की
चहचहाट वो आँगन की
आँगन में बिखरी उन खुशियों की
खुशी वो आजाद परिंदे की
परिंदा जैसे खुले आसमान में उड़ने की
ख्वाइश है आज मेरी।।।

No comments:

Post a Comment

दूसरी चिट्ठी

वक़्त किताबों के पन्नों की तरह पलटता जा रहा है और ऐसे ही अब तुम २ वर्ष के एक नन्हें से फूल बनते जा रहे हो ,नन्हें फूल की शैतानियों किलकारियों...