Monday, June 27, 2022

मेरा अंश

बात 28 /05 /2021, दिन शुक्रवार  की है जब तुमने इस दुनिया में रो रो कर कदम रखा , उस समय ऑपरेशन थिएटर में जब पहली बार मैंने तुम्हारे रोने की आवाज़ सुनी तो तुम्हारे साथ आँसू मेरे भी आये थे , वो चंचलता , विवशता तुम्हें देखने की जो मेरे अंदर बढ़ती जा रही थी खुद को रोके रखना मुश्किल भरा था , उससे भी ज्यादा मुश्किल था तुम्हें गोद में न उठा पाना | 

उस समय हॉस्पिटल के बेड पर जो महसूस हो रहा था वो ये की वक़्त के हाथों मेरा जीवन आगे बढ़ रहा है या फिर उसी के हाथों फिसल सा रहा है, जो दर्द मैंने महसूस किया उसका  एहसास मात्र भी तुम तक न पहुँच पायेगा | फिर भी मैंने कोशिश की तुम्हें अपनी बाँहों में उठाने की , अपनी बाँहों में घेर कर मेरा मन आँसुओं में बह जाना चाह रहा था पर खुद को रोके रखा , तुम्हें अपनी गोद में देख कर मैंने ये सोचा की कैसे एक औरत नौ माह तक सब्र के दरवाज़े खोले रखती है कैसे उसको इंतज़ार होता है बस अपने अंश के आने का | 

सिर्फ एक अहसास | 

मेरा अंतर्मन खिल उठा जैसे सूरज की पहली किरण ने आँखे खोली और वो सीधे सूरजमुखी पर जा गिरी , तुम्हें गोद में उठाते ही मैं नज़र भर बस तुम्हें देख रही थी, देख रही थी  की तुम कैसे नौ माह तक खुद को मेरी कोख में संभाले रहे , मैं तो बस तुमसे ऊपर से बातें करती थी 

तुम्हें मेरी बातें सुनाई देती थीं या नहीं ? 

सुनाई देती होंगी ! 

तभी तो जब मैं तुमसे कुछ कहती तो तुम अपना हाथ या पैर हिला दिया करते  थे, समझ जाती थी की तुम्हें भी मेरा अहसास पता चलता है | आँखें खोलने पर जब पहली बार तुमने देखा तो ऐसा लगा की पिछले नौ महीने कोई कष्ट था ही नहीं , सब कुछ धुंधला सा हो गया और उस धुंध से निकल कर बस  तुम आये हो मेरे पास | 

मुझे माँ कहने !

अभी तो तुम्हें आये बस एक महीना हुआ है | 

"अभी तो बहुत कुछ रचा जाना बाक़ी है , बाक़ी है अभी तुम्हें सही ढाँचे में रचना "

पर अभी तो मुझे भी सीखना बाक़ी है तुम्हें कैसे संभाला जाये, इतनी सी जान और इतना रोना चिल्लाना | 

कष्ट तो तुम्हें भी होता होगा !

मैं जब भी तुम्हारे सर पर हाथ  फेरा करती हूँ तो मंद मंद मुस्कराहट तुम्हारे चेहरे की देख समझ जाती हूँ की मेरा ऐसा करना अच्छा लगता है | अभी तुम एक नन्ही कली के समान हो जिसने अभी अभी जन्म लिया है | 

ऐसे ही बातों बातों में एक महीना भी हो गया है और तुमने अपने हाथ पैर चलाना शुरू कर दिया है , धीरे -धीरे तुम ऐसे ही रंगो से सजी दुनिया में घुल मिल जाओगे , ख़्वाबों का रंग, दुआ का रंग ,घटा  का रंग , बन्दगी का रंग , हँसी का रंग, हर रंग के वज़ूद में खुद के रंग को ढूँढना है तुम्हें | तुम्हारे साथ मैं भी अपने बचपन को जी रही हूँ , कि कैसे मैंने भी अपने बचपन में अपनी माँ और तुम्हारी नानी को परेशान किया होगा , तुम्हारी हर छोटी छोटी कोशिश , नादानी , शैतानी और  मासूमियत जैसे किसी चोट पर मरहम हो और सब कुछ बस प्यारा सा लगने लगे ऐसे हो तुम | तुम्हारी हर एक चीज़ को लगाव से रखना ,कोशिश करना कि तुम्हें कोई तक़लीफ़ न हो सब कुछ करना मेरे लिए भी बिल्कुल नया है | 

"अपनी माँ की गोद से निकल कर मैंने तुम्हें अपनी गोद में पाया है " थोड़ा वक़्त तो लगेगा मुझे भी | 

रात -रात भर तुम सोते नहीं हो क्योंकि तुमने अपनी नींद दिन में पूरी कर ली होती है थकान के कारण मुझे तुम पर गुस्सा आ जाता है, लेकिन  फिर जैसे ही मेरी नज़रे तुम्हारी नज़रों से मिलती है तो वो मासूमियत ,वो नटखटता जैसे बहुत कुछ कहने को बेताब हो देख कर मेरी थकान और गुस्सा दोनों ही मुस्कान में बदल जाते हैं | मैं कोशिश करती हूँ कि तुम्हारी हर याद को, अदा को, आब -ओ -आब को कैद कर  तुम्हारे अंदर एक आज़ाद पंछी होने का बीज़ सृजित करूँ और वक़्त के साथ तुम्हारी हर उड़ान को देखती रहूँ | 

अभी तक तो तुमने सिर्फ हाथ पैर चलाना ही सीखा था पर अब करवट लेना भी सीख गए हो तो करवट लेते लेते कहीं बेड से न गिर जाओ इसके लिए में तुम्हारे चारों तरफ़ तकिया लगा कर जाती हूँ लेक़िन तुम ठहरे तुम ,तकिये के ऊपर ही सो जाते हो | तुम्हारी शैतानियों के मुस्कराहट के कि कैसे आज तुमने अख़बार को हाथ से पकड़ कर खींचा था ,कैसे आज अपने खिलौने को पहले पकड़ा फिर ज़ोर से फेंका भी था हर छोटी हरक़त जो मन को लुभा देती है के किस्से अब फ़ोन पर तुम्हारी नानी , बुआ और सभी को बताना शुरू हो गए है | 

मुझे चिट्ठियाँ लिखना पसंद है इसलिए तुम्हारे लिए भी एक लिख रही हूँ , अभी तुम शब्दों की दुनिया से अंजान उस स्याही की तरह हो जिसे सही क़लम में भरा जाना बाक़ी है , उस स्याही का रंग बेबाक़ी साहस और बहुत सी प्यारी यादों भरा हो ऐसी मेरी कोशिश रहेगी , जब मेरी लिखी चिट्ठियाँ तुम तक पहुँचे तो मैं चाहती हूँ कि तुम न केवल उन्हें पढ़ो बल्कि उनके जरिये अपने बचपन को याद करो और ज़वाब मैं मुझे भी चिट्ठियाँ ही लिखो

हमारे लिए लिखी गयी चिट्ठियाँ अक्सर हमारे ख़ाली समय में पढ़ी गयी हमारे विचलित मन को जैसे तूफानों के बवंडर के बाद जो शान्ति आती है वैसे ही सुखद अनुभव देती है , मैं भी तुम्हारे आने वाले समय के तूफानों के पीछे के एकाकीपन का जरिया अपने शब्दों को बनाना चाहती हूँ कि जब तुम ज़िन्दगी के ऐसे मोड़ पर हो तो तुम्हें अकेला महसूस न हो | जैसे जैसे तुम बढ़े हो रहे हो मेरी भी जिम्मेदारियाँ तुम्हारे प्रति बढ़ रही है , तुम्हारी देखभाल से लेकर हर हरकत पर मुझे खरा उतरना होगा , बढ़े तुम हो रहे हो लेकिन बड़ा तुम्हें मुझे बनाना होगा , हर एक विचार जो तुम्हारे मन में कौंध करेगा उस पर मेरे विचारो , संस्कारो और परवरिश से पोषित होगा और उन सबके बीच मेरी कोशिश रहेगी कि तुम्हें मैं रंग भरना सीखा सकूँ हर एक ख़्वाब में | 

तुम्हारी अलबेली 

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