कल स्याह रातों की
तर्ज को रोशन करते
एक नन्ही कली खिली है
बेहद मासूम पर ,
कुछ भय में लिपटी है
सम्बोधित कर पूछे यह
बार - बार हर नजर से ,
धरातल पर जो युद्ध
छिड़ा महामारी के प्रकोप से,
कोना क्या एक कदम भर
मोहलत होगा बचपन के खेलों से,
आरज़ू करूँ, शिकायत करूँ,
या कि ह्रदय की असीम बेदना व्यक्त करूँ?
ममता की छावं में शीश झुका पाउंगी
या कि महामारी के युद्ध में भागीदार ,
बन शाम ढले सूरज की बाहों में
सदैव की निद्रा को गले लगाउंगी ।
नई तकनीकें, नए परीक्षण
आधुनिक बनने का नकाव
पहने हम सब ने खुद ही कहर
अपने ऊपर बरपाया है
जवाब माँग रही हमसे ,
हर आँसू की एक बूँद है
जन्मदाता तो, बन बैठे हैं
तकनीकी दुनिया के
क्षमा कोसों दूर रहेगी
हमारे नसीबो से
जो माँ- बाप के आसरे के
लिए हमको तरसाया है
नज़र भर देख भी न सके
आँखों के तारे थे हम
जिस जननी के ,
कंधा देना लकीरो में न था ,
राख भी न मिली हमें
कारण , कोरोना की कैद में हम
कोरोना की कैद में हम
© Khushboo Agrawal
तर्ज को रोशन करते
एक नन्ही कली खिली है
बेहद मासूम पर ,
कुछ भय में लिपटी है
सम्बोधित कर पूछे यह
बार - बार हर नजर से ,
धरातल पर जो युद्ध
छिड़ा महामारी के प्रकोप से,
कोना क्या एक कदम भर
मोहलत होगा बचपन के खेलों से,
आरज़ू करूँ, शिकायत करूँ,
या कि ह्रदय की असीम बेदना व्यक्त करूँ?
ममता की छावं में शीश झुका पाउंगी
या कि महामारी के युद्ध में भागीदार ,
बन शाम ढले सूरज की बाहों में
सदैव की निद्रा को गले लगाउंगी ।
नई तकनीकें, नए परीक्षण
आधुनिक बनने का नकाव
पहने हम सब ने खुद ही कहर
अपने ऊपर बरपाया है
जवाब माँग रही हमसे ,
हर आँसू की एक बूँद है
जन्मदाता तो, बन बैठे हैं
तकनीकी दुनिया के
क्षमा कोसों दूर रहेगी
हमारे नसीबो से
जो माँ- बाप के आसरे के
लिए हमको तरसाया है
नज़र भर देख भी न सके
आँखों के तारे थे हम
जिस जननी के ,
कंधा देना लकीरो में न था ,
राख भी न मिली हमें
कारण , कोरोना की कैद में हम
कोरोना की कैद में हम
© Khushboo Agrawal
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